– ओवरहेड टैंक बना शोपीस, घटिया पाइपलाइन और लापरवाही से ग्रामीणों की उम्मीदों पर फिरा पानी
– 15 हजार की आबादी के लिए बनी योजना साबित हो रही है हाथी के दांत
– घर-घर टोटी के लिए कनेक्शन तो पहुंची, मगर पानी आज भी कोसों दूर
बॉर्डर न्यूज़ लाइव, महराजगंज
ठूठीबारी/महराजगंज। महराजगंज जिले की इंडो-नेपाल सीमा से सटा ठूठीबारी क्षेत्र आज भी बुनियादी जरूरत शुद्ध पेयजल के लिए जूझ रहा है। “हर घर नल से जल” और “जल जीवन मिशन” जैसी बहुप्रचारित योजनाएं इस इलाके में सिर्फ शिलापट्टों और खोखले उद्घाटनों तक सीमित रह गई हैं। जिन टंकियों और पाइपों से उम्मीद की धार बहनी थी, वे आज लोगों की उम्मीदों को बहाकर ले जा रही हैं।
वादों का पानी नहीं उतरा धरातल पर
महराजगंज जिले के इंडो-नेपाल बॉर्डर पर स्थित ठूठीबारी क्षेत्र की जनता आज भी शुद्ध पेयजल के लिए संघर्ष कर रही है। वर्षों से पानी की समस्या से जूझ रहे लोगों को ‘हर घर नल से जल’ योजना और जल जीवन मिशन से बड़ी उम्मीद थी, लेकिन करोड़ों रुपये खर्च हो जाने के बावजूद यह योजनाएं धरातल पर नाकाम साबित हो रही हैं।
ढाई दशक पुराना सपना बना खंडहर
ठूठीबारी के टोला सड़कहवा में ढाई दशक पूर्व तत्कालीन विधायक व मंत्री शिवेंद्र सिंह के प्रयासों से एक ओवरहेड टैंक का निर्माण हुआ था। करीब 85 लाख रुपये की लागत से तैयार इस टैंक को क्षेत्र की 15 हजार की आबादी को शुद्ध जल आपूर्ति के उद्देश्य से बनाया गया था। लेकिन यह सपना अधूरा ही रह गया।
घटिया पाइपलाइन से योजना की जड़ें कमजोर
टैंक बनने के बाद सप्लाई के लिए जो पाइपलाइन बिछाई गई, वह इतनी घटिया क्वालिटी की थी कि पानी शुरू होते ही जगह-जगह से पाइप फटने लगे। इसके कारण योजना कभी सुचारू रूप से शुरू ही नहीं हो पाई। स्थिति इतनी खराब रही कि पाइपलाइन को लेकर ग्रामीणों में बार-बार नाराज़गी देखने को मिली।
दूसरी बार करोड़ों की लागत फिर भी वही हश्र
ग्रामीणों की लगातार शिकायतों और सरकार की नीतियों के दावों के बीच तीन साल पूर्व दोबारा पाइपलाइन बिछाने का काम शुरू किया गया। इस बार करीब 1 करोड़ 80 लाख रुपये के भारी भरकम बजट से पाइपलाइन और नल कनेक्शन की व्यवस्था की गई, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।
ग्राम सभा के लगभग हर घर के सामने टोटी लग चुकी है, लेकिन उनमें पानी नहीं आता। पाइपलाइन या तो ठीक से जुड़ी नहीं है, या फिर सप्लाई सिस्टम में कोई गंभीर खामी है।
इंडिया मार्का हैंडपंप भी बेहाल
ठूठीबारी क्षेत्र में पानी का एकमात्र विकल्प अब भी ‘इंडिया मार्का हैंडपंप’ ही हैं, जिनकी स्थिति भी दयनीय बनी हुई है। अधिकतर हैंडपंप या तो सूख चुके हैं या खराब हैं। गर्मियों के दिनों में स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जब महिलाओं और बच्चों को पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।
योजना के नाम पर छलावा, जिम्मेदारों पर उठे सवाल
जिस योजना के तहत ‘हर घर नल से जल’ का सपना दिखाया गया, वह सिर्फ टोटियों के लग जाने तक ही सीमित रह गया है। अब यह योजनाएं ग्रामीणों के लिए ‘हाथी के दांत’ जैसी साबित हो रही हैं देखने में भव्य, मगर व्यवहार में बेकार।
लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन की लापरवाही, ठेकेदारों की मनमानी और अधिकारियों की उदासीनता ने इस महत्वाकांक्षी योजना को विफल कर दिया है।
कब मिलेगा पानी, कौन लेगा जिम्मेदारी?
भारत-नेपाल सीमा पर बसे ठूठीबारी जैसे संवेदनशील और विकास से वंचित क्षेत्र में पानी जैसी मूलभूत सुविधा के लिए भी यदि जनता को वर्षों तक तरसना पड़े, तो यह सीधे तौर पर सिस्टम पर सवालिया निशान है।
अब ग्रामीणों को केवल सरकारी घोषणाओं और नेताओं के आश्वासनों पर नहीं, ठोस कार्रवाई और जवाबदेही की दरकार है। अगर जल्द ही हालात नहीं सुधरे, तो यह मुद्दा एक बड़े जन आंदोलन की शक्ल ले सकता है।