पीलीभीत से 35 साल का टूटा मेनका-वरुण के सीट का नाता
तो क्या अब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर वरुण आजमा सकते है किस्मत
बॉर्डर न्यूज़ लाइव, उत्तर प्रदेश (संपादक अरुण वर्मा)
पीलीभीत/उत्तर प्रदेश। यूपी के पीलीभीत में नामांकन दाखिल करने का समय समाप्त होने के साथ ही मेनका-वरुण का पीलीभीत सीट से नाता टूट गया। 35 वर्ष पुराने रिश्ते में कभी मेनका तो कभी वरुण जिले के लोगों से जुड़े रहे। लोकसभा चुनाव से कुछ माह पहले से ही वरुण गांधी का टिकट कटने की चर्चाएं होनी लगी थीं। कयास भी यह भी लगाया जा रहा था कि वरुण पीलीभीत से निर्दल चुनाव लड़ सकते हैं। नामांकन के अंतिम समय तक वरुण की दावेदारी की चर्चाएं होती रहीं। समय समाप्त होते ही कयास और चर्चाएं भी समाप्त हो गईं। वरुण गांधी के परिवार का पीलीभीत से रिश्ता 35 साल पुराना है। वर्ष 1989 में जनता दल से मेनका गांधी ने राजनीति की शुरुआत की थी और तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया और तोहफे में जीत दी। नामांकन दाखिल करने का समय समाप्त होने के साथ ही मेनका-वरुण का पीलीभीत सीट से नाता टूट गया। 35 वर्ष पुराने रिश्ते में कभी मेनका तो कभी वरुण जिले के लोगों से जुड़े रहे। लोकसभा चुनाव से कुछ माह पहले से ही वरुण गांधी का टिकट कटने की चर्चाएं होनी लगी थीं। कयास भी यह भी लगाया जा रहा था कि वरुण पीलीभीत से निर्दल चुनाव लड़ सकते हैं। नामांकन के अंतिम समय तक वरुण की दावेदारी की चर्चाएं होती रहीं। समय समाप्त होते ही कयास और चर्चाएं भी समाप्त हो गईं। वरुण गांधी के परिवार का पीलीभीत से रिश्ता 35 साल पुराना है। वर्ष 1989 में जनता दल से मेनका गांधी ने राजनीति की शुरुआत की थी और तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया और तोहफे में जीत दी। हालांकि दो साल बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के परशुराम गंगवार से मेनका हार गई थीं।
वर्ष 1996 में मेनका ने फिर जनता दल से चुनाव लड़कर अपनी हार का बदला लिया था। फिर वर्ष 1998 व 1999 में वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीतती रहीं। वर्ष 2004 में मेनका ने भाजपा का दामन थामा और फिर जीत हासिल की। वर्ष 2009 में उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे वरुण गांधी के हवाले कर दी और खुद सुल्तानपुर चली गईं। वोटरों ने भी वरुण को हाथों हाथ लिया और वह रिकॉर्ड मतों से जीते।
राजनीति में वरुण युवाओं की पहली पसंद बन गए। वर्ष 2014 में मेनका फिर पीलीभीत से लड़कर जीती और वरुण सुल्तानपुर से जीते। बाद में 2019 में फिर पीलीभीत से सांसद बने। मेनका यहां से छह बार व वरुण दो बार सांसद रहे। 1996 से अब तक इनका परिवार ही लगातार काबिज हैं। बुधवार को नामांकन दाखिल करने का समय समाप्त होने के साथ ही मां-बेटे का पीलीभीत से नाता भी टूट गया।